Monday, December 21, 2015

साथी..


उड़ते वक़्त बस आसमान दिखता था उसे
नीला, सफ़ेद, खूबसूरत हवा आँखों में जाती तो जैसे दुनिया जीत रहा हो होंठों पर एक सूखापन लुभाता खूब



Thursday, August 13, 2015

जीवन, शायद

नन्हे नन्हे दो हाथ निकलते हैं मिटटी से
कब्र है शायद वहां
आप सोचते हैं एक पल और बढ़ते हैं आगे
गहरी खाई हरे रंग की
उससे बहता है एक सपना
जन्मो से बहने वाला ये सपना
टूटता है बीच में
और देता है जन्म
एक बच्ची को



Thursday, August 6, 2015

लौटना

घाव में नमक डालते हुए
हम आज़ाद होने की उम्मीद में
अपने बच्चों को दे रहे थे कुछ सुख
चुन रहे थे एक वक़्त उनके लिए
जिसकी डालियों पर कांटें थे मगर
खूशबू आती थी जड़ों से



Friday, July 24, 2015

बिंदु में

सपने में गुड़िया
हवा पानी आग
हर रंग हर चिराग
डूबे जो एक बार
तिनका मिले न मिले, ठण्ड मिलेगी
बर्फ बनकर पिघल रहे हैं हम
कागज़ के सफ़ेद पन्नो पर
लाल स्याही से लिखा जा रहा है
पुराना सा कोई किस्सा
नए किरदार धोखे में हैं
ख़ुशी बड़ी चीज़ है
संगीत खूबसूरत हमेशा के जैसे



Thursday, July 23, 2015

कोलाहल

दबते दबते धीमा हुआ और फिर निकल गया वो 
दुबकते दुबकते जैसे घर से भाग जाया करते थे आप दोपहरों में
दरवाज़े खटखटाने से आवाज़ आती है 
दिल धड़कने से सन्नाटा जन्म लेता है 
दालों को मिलाने से नया स्वाद पता चलता है 
और रंगों को मिलाने से अंधेरा हो जाता है 



Wednesday, May 20, 2015

दूर की रोशनियाँ ..

पडोसी थोड़ा ज़्यादा सच्चा रहा हमेशा
दूर की रौशनी ज़्यादा खूबसूरत

हम पिघल रहें हैं ज़रा ज़रा
या जम रहें हैं अंदर
ठंडक हो या गर्मी
पानी की ज़रूरत रहेगी हमेशा 

वो जो खुद को जुदा मानता है
नहीं जानता मतलब दूरियों का
वो जो बहता है नसों में
पहाड़ों पर ढूंढता है अपनी जगह



Tuesday, March 24, 2015

डर और हंसी

डर और हंसी के बीच एक दीवार थी 
मैं उसी दीवार में रहना चाहती थी 
लेकिन उस दीवार से दोस्ती नहीं हो सकती थी 
दीवारों से दोस्ती नहीं होती 

मुझे दरवाज़े पसंद थे 
बड़े खुले रंगीन दरवाज़े 
जब सांस घुटने लगती थी 
मैं खिड़की पर जाकर बैठती थी 
वहीं, खिड़की पर बैठे ही 
देखा था मैंने तुम्हें 
पहली बार 
सामने की सड़क से गुज़रे तुम 
सफेद रंग ओढ़े हुए



Saturday, February 14, 2015

शांत..

घंटों चुप रहना और फिर शांति से कहना कुछ
बड़बड़ाना खुद में और चाहना रोना
मगर रो ना पाना

गले में पत्थर अटका है एक
न निगल पाते हैं
न हटा पाते हैं
पाप किया कभी या पुण्य
सब बराबर इस लम्हें में
रो पाएं एक जान तो बच जाये एक जहाँन



छोटी लड़की वो

वो छोटे शहर की छोटी सी लड़की
भागती हुई इधर उधर
लड़ती हुई खुद से
सब से, फिर सोचती हुई
बताती हुई खुद को अपने सपने
बार बार
कई बार
हंसती हुई
रोती हुई
सबसे घिरी, अकेली
मिलना है उस लड़की से
बताना है उसे
क्या दिया है उसने मुझे
कैसे उसके होने में मैं हूँ
और मेरे होने में वो
कैसे वो इतनी प्यारी है मुझे
जैसे अपना बच्चा



Thursday, February 5, 2015

घड़ा भर रहा था

घड़ा भर रहा था 
पुराना था 
टूट सकता था कभी भी 
जीवन पूरा हुआ था या नहीं
हम बता नहीं सकते थे 
उसके टूटने पर ज़्यादा दुख उसके मालिक को होने वाला था 
या फिर उस कुम्हार को, जिसने गढ़ा था उसे ?
हम सब में शर्त लगी थी 
और दोनो तरफ बराबर लोग थे 
घड़े के टूटने का इंतज़ार होने लगा



Wednesday, January 28, 2015

खाली हो जाना

हम सब खाली हो जाना चाहते थे 
या भर जाना चाहते थे इतना
कि कोई जगह ना बचे अब और कुछ भरने के लिए 
लेकिन हमारे पास ना आने का रास्ते बंद करने के लिए कोई हथियार था 
और ना जाने का दरवाज़ा बंद हो सकता था 
हम तड़पते थे तो क्रूर लगते थे इतने 
कि खुद को मौत कि सजा सुनाना मुमकिन होता 
तो हम सब शायद कई कई बार वो कर चुके होते



गर्म रेत में सांस लेना और देखना चाँद को उगते हुए

उधार सी मांगी इन साँसों को खर्च करने में डर लगता है जैसे
आसमान से कुछ टपकता है
गिरता है आँख में मेरी
पसीजता है रूह को ऐसे कि
अब ज़मीन से मोहब्बत होती है गहरी

मिट्टी जो खाई है बचपन में
पेट में नहीं, दिमाग में बस गई है
गुलाब की खुशबू बालों में है
पाँव में है एक आवाज़
गुनगुनाहट सी जैसे