Tuesday, March 24, 2015

डर और हंसी

डर और हंसी के बीच एक दीवार थी 
मैं उसी दीवार में रहना चाहती थी 
लेकिन उस दीवार से दोस्ती नहीं हो सकती थी 
दीवारों से दोस्ती नहीं होती 

मुझे दरवाज़े पसंद थे 
बड़े खुले रंगीन दरवाज़े 
जब सांस घुटने लगती थी 
मैं खिड़की पर जाकर बैठती थी 
वहीं, खिड़की पर बैठे ही 
देखा था मैंने तुम्हें 
पहली बार 
सामने की सड़क से गुज़रे तुम 
सफेद रंग ओढ़े हुए