टेढ़ी मेढ़ी गलियां हैं। गलियां नहीं रास्ते। टेढ़े मेढ़े नहीं, ऊपर नीचे ! सांप की तरह फैले हुए, एक लम्बा सांप। अनन्त। एक लड़की है, छोटी लड़की, हवा के जैसी । छोटी लड़की ऊपर चढ़ती है। कोई दस कदम, और देखती है मुड़कर नीचे की ओर, हर दस कदम पर। घर छोटा, फिर थोड़ा ओर छोटा फिर थोड़ा ओर ऊपर से ओर भी छोटा नज़र आता है। जैसे खेल हो गया है एक, हर दस कदम, और घर ओर छोटा। अब जब वो पहुँचने वाली है सबसे ऊपर की चोटी पर, तो नहीं कर पा रही है फैसला की जाए तो कहाँ जाए इसके बाद?
Wednesday, April 13, 2016
अनगिनत
सभांलकर रखने का मन नहीं होता कुछ
बस बिखर जाए सब
और हो जाए लापता
एक दिन आये लौटकर
और धीरे से हाथ रखकर कांधे पर पूछे,
क्या हाल?, सब अच्छा ?
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