Tuesday, January 28, 2020

चोट

उसे चोट लगी थी 
और वो ये बात मानने को तैयार नही था 

इस ना मानने के चक्कर में 
उसने कितने लोगों को चोट दी 
इसकी गिनती करना लगभग असंभव है



पत्थर

जैसे कांटे में फंसती है मछली 
पत्थरों में फंस जाता है मन 

जैसे सपने में एक और सपना है
हक़ीक़त पर है एक परत फिलहाल 



एक ही सांस में

सच और झूठ में बस एक दीवार का फर्क नहीं है
ये एक मैदान है
जिसमे कईँ दीवारें हैं
कितनी लांघ पाएंगे हम 
कितनी तोड़ पाएंगे 
कोशिश करना चाहोगे क्या? 
और भला क्यों? 



सिफर से

सिर्फ शांत रहना ही नही 
गुस्सा आना भी ज़रूरी था 
पहाड़ चढ़ना ही नहीं, उतारना भी
खुश रहना ही नहीं
दुख सहना भी



वहाँ नहीं मिलूँगी


मैंने लिखा एक एक करके हर अहसास को कागज़ पर 
और संभाल कर रखा उसे फ़िर
दरअसल छुपा कर