मैंने लिखा एक एक करके हर अहसास को कागज़ पर
और संभाल कर रखा उसे फ़िर
मैंने खटखटाया एक दरवाज़ा
और भाग गई फिर
डर, जितने डर थे
उतने निडर नहीं हम
छुपते छुपाते जब आखिर निकलो जंगल से बाहर
जंगल रह जाता है साथ ही
आसमान से झूठ बोलो या सच
समझ जाना ही है उसे
की दोस्त होते ही हैं ऐसे।
मेरे डरो से पार
एक दुनिया है
तुम वहीं ढूंढ रहे हो मुझे
वहाँ नहीं मिलूँगी मैं।
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