सिर्फ शांत रहना ही नही
गुस्सा आना भी ज़रूरी था
पहाड़ चढ़ना ही नहीं, उतारना भी
खुश रहना ही नहीं
मैंने जाने सारे मुश्किल सवाल
सबसे आसान जवाबों में
पहचाना सबसे आसान अहसासों को
सबसे मुश्किल लम्हों में
देखा सबसे प्यारे लोगों को
सबसे क्रूर हालातों में
मिली खुद से कभी तो अक्सर खोया भी खुद को
सबसे प्यारी मुलाकातों में
तुम मत पूछो
क्यों नहीं मिलती हूँ मैं
कि प्रेम सुनकर अब भी
कविता सी क्यों नही खिलती हूँ मैं
झूठ नहीं है कोई, सच पर परतें हैं बस
गुब्बारे में हवा सी भरी कोरी शर्तें हैं बस
लिख लूं पढ़ लू बोल लू कुछ भी मैं
बात बस इतनी सी है
ये खेल नहीं खेला जाएगा मुझसे अब फिर से
कि वही पुराना सफर कितनी बार हो शुरू उसी एक सिफर से।
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