Thursday, April 28, 2022

बचीखुची

 

मैं माथे से शुरू करती हूँ
पहुँचती हूँ छाती तक 
खोजती हूँ दिल अपना 
और कुछ एक, कुछ भी भाव 
और हैरान होती हूँ तब
जब सचमुच मेरे हाथ में मुझे महसूस होता है कुछ।



खुद से

कि गिरो कितनी भी बार मगर 
उठो तो यूँ उठो 
कि पंख पहले से लंबे हों 
और उड़ान न सिर्फ ऊंची पर गहरी भी 

कि हारना और डरना रहे बस हिस्सा भर
एक लंबी उम्र का 
और उम्मीद और भरपूर मोहब्बत
हों परिभाषाएं 



कितना वक़्त लगता है

कितना वक़्त लगता है
खुद से कहने में
कि जो हुआ, ग़लत हुआ
मगर अब वो बीत चूका है
और कल या आज भी बल्कि
जो है, वो अलग है
कि उसे आज अलग आँखों,
नए नज़रिये से देखो
यूँ तो एक मिनट ही शायद
चंद सेकंड
पर कभी कभी एक साल, कभी कभी कई



माएँ

पाप का घड़ा भरने ही वाला होता है
और दुनिया के किसी कोने से एक माँ आकर
उसमे बस एक तिनका भर मोहब्बत,
तो कभी ज़रा सी ममता,
चुटकी भर दुलार
तो कभी बस एक छोटा सा हिस्सा अपनी करुणा का
उड़ेल देती है

कठोर, भद्दे घड़े में
अपनी नाज़ुक सी खूबसूरती
माँ इतनी सहजता से भरती है
कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं
और ऐसे, एक माँ
घड़े के बोझ को पलक झपकते ही हल्का कर देती है



घुटन के नाम

घुटन के कईं नाम थे
एक जैसे सुबह
एक जैसे सोने की कोशिश

प्यार को खूंटी बनाकर
गले से टांगा मैंने उसपर खुद को
और रोना न आया जब कोसा काफी
माफ़ी मांगना खुद को माफ़ कर पाना नहीं था
कलेजा चीर कर बस मरा जा सकता था
साबित करना कुछ भी जैसे हंसना खुद पर