पाप का घड़ा भरने ही वाला होता है
और दुनिया के किसी कोने से एक माँ आकर
उसमे बस एक तिनका भर मोहब्बत,
तो कभी ज़रा सी ममता,
चुटकी भर दुलार
तो कभी बस एक छोटा सा हिस्सा अपनी करुणा का
उड़ेल देती है
कठोर, भद्दे घड़े में
अपनी नाज़ुक सी खूबसूरती
माँ इतनी सहजता से भरती है
कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं
और ऐसे, एक माँ
घड़े के बोझ को पलक झपकते ही हल्का कर देती है
घड़ा यूँ तो समझ नहीं पाता इस परिक्रिया को
मगर अब मुश्किल है उसके लिए
यूँ बिना कुछ कहे, सुने, समझे
बस टूट जाना
तो घड़ा बस बना रहता है
और इंतज़ार करने लगता है
थोड़े और पाप का
थोड़ा और भरने का
उसके थोड़ा और भरने पर
किसी और कोने से
एक और माँ आ जाती है
अपनी कोमलता का ज़रा सा हिस्सा लेकर
घड़े में डाल देती है
उसके लिए ज़रा सा
मगर काफी
दुनिया को बचाय रखने के लिए
और दुनिया हर रोज़
बस ऐसे ही
थोड़ा और
थोड़ा और करके
बचती जाती है
दुनिया अगर टिकी हुई है
तो बस इसलिए
क्योंकि माएँ हैं,
और संभाले हुए हैं।
No comments:
Post a Comment