कि गिरो कितनी भी बार मगर
उठो तो यूँ उठो
कि पंख पहले से लंबे हों
और उड़ान न सिर्फ ऊंची पर गहरी भी
कि हारना और डरना रहे बस हिस्सा भर
एक लंबी उम्र का
और उम्मीद और भरपूर मोहब्बत
कि जागो तो सुबह शांत हो
ठीक जैसे मन भी हो
कि खुद को देखो तो चूमो माथा
गले लगो खुद से चिपककर
कि कब से
कितने वक्त से, सदियों से बल्कि
उधार चल रहा है अपने आप का।
प्यार का जब हो ज़िक्र
तो सबसे पहला नाम खुद का याद आए
दुख का हो तो जैसे
किसी भूली भटकी चीज़ का
माँ का हो ज़िक्र तो बस
चेहरे का चूमना याद आए
बेतहाशा, एक सेकंड में बीसों बार
कि ग़लतियों और माफियों को भूल जाएं ठीक वैसे ही
जैसे लिखकर मिटाया हो कोई शब्द या चित्र।
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