घंटों चुप रहना और फिर शांति से कहना कुछ
बड़बड़ाना खुद में और चाहना रोना
मगर रो ना पाना
गले में पत्थर अटका है एक
न निगल पाते हैं
न हटा पाते हैं
पाप किया कभी या पुण्य
सब बराबर इस लम्हें में
रो पाएं एक जान तो बच जाये एक जहाँन