Saturday, February 14, 2015

शांत..

घंटों चुप रहना और फिर शांति से कहना कुछ
बड़बड़ाना खुद में और चाहना रोना
मगर रो ना पाना

गले में पत्थर अटका है एक
न निगल पाते हैं
न हटा पाते हैं
पाप किया कभी या पुण्य
सब बराबर इस लम्हें में
रो पाएं एक जान तो बच जाये एक जहाँन



छोटी लड़की वो

वो छोटे शहर की छोटी सी लड़की
भागती हुई इधर उधर
लड़ती हुई खुद से
सब से, फिर सोचती हुई
बताती हुई खुद को अपने सपने
बार बार
कई बार
हंसती हुई
रोती हुई
सबसे घिरी, अकेली
मिलना है उस लड़की से
बताना है उसे
क्या दिया है उसने मुझे
कैसे उसके होने में मैं हूँ
और मेरे होने में वो
कैसे वो इतनी प्यारी है मुझे
जैसे अपना बच्चा



Thursday, February 5, 2015

घड़ा भर रहा था

घड़ा भर रहा था 
पुराना था 
टूट सकता था कभी भी 
जीवन पूरा हुआ था या नहीं
हम बता नहीं सकते थे 
उसके टूटने पर ज़्यादा दुख उसके मालिक को होने वाला था 
या फिर उस कुम्हार को, जिसने गढ़ा था उसे ?
हम सब में शर्त लगी थी 
और दोनो तरफ बराबर लोग थे 
घड़े के टूटने का इंतज़ार होने लगा