घड़ा भर रहा था
पुराना था
टूट सकता था कभी भी
जीवन पूरा हुआ था या नहीं
हम बता नहीं सकते थे
उसके टूटने पर ज़्यादा दुख उसके मालिक को होने वाला था
या फिर उस कुम्हार को, जिसने गढ़ा था उसे ?
हम सब में शर्त लगी थी
और दोनो तरफ बराबर लोग थे
घड़े के टूटने का इंतज़ार होने लगा
मैं उड़ रही थी
उड़े जा रही थी
और सांस नहीं आ रही थी
मुझे बार बार लगता था अब इस बार पंख चलाने के बाद मैं गिर जाऊँगी
लेकिन फिर मैं 4-5 पंख और चला लेती
ऐसे मैने कईं kilometers का सफर तय कर लिया
अब मुझे तय करना था आगे का सफर
आगे के सफर में मैने खुद को मरा हुआ मान लिया था
तो अब ये मानना कि ज़िंदा हूँ मैं, कैसे हो भला
ये उधार का जीवन कैसे खर्च किया जा सकता था?
हम सब इतने जालों में फंसे हुए थे
कि जब भी हम एक जाल से निकलते
हमे खुशी नहीं होती थी
हम सोचते रह जाते थे, अभी कितने और?
हमने कई शामें बिताई इस बात पर
महफिलें जमाईं
और विचार जाने एक दूसरे के
और अंत में हमने तय किया
कि चूंकि मैं पहले से सोच चुकी थी अपना अंत
इसलिए अब अच्छा यही होगा कि मैं
खुशी खुशी खुद ही अपनी जान दे दूं
ऐसा मैं धर्म के किसी काम के लिए कर सकती थी
या समाज में फैली किसी बुराई के खिलाफ
मंदिर के सामने खुद को आग लगाकर
मंदिर के सामने खुद को आग लगाकर
या प्रसाद में ज़हर मिलाकर
या फिर कूद जाती किसी पुराने कुएं में
कोई भी रास्ता
मुझे एक ही जगह ले जाना वाला था
और इसलिए रास्ते से फर्क नहीं पड़ता था
हाँ लेकिन आगे का सोचना ज़रूरी था
ऐसा करने से
मेरे जाने के बाद
मेरे नाम पर बात होती
शायद कुछ मूर्तियाँ बनवाई जाती
कुछ पूजाएँ रखवाई जा सकतीं थी
जहां मेरी उड़ान नहीं, मगर मेरे अच्छे चाल चलन पर ज़रूर बात होती
और ऐसे दूर होती सारी बुराइयां
और धर्म की जय जयकार होती
और ऐसे उन्हीं किन्हीं लम्हों में
मैं अमर हो जाती
बस अगर मैं उससे ना मिली होती उस दिन
13 साल की वो लड़की
43 साल का वो आदमी
उसने छुपाना नहीं चाहा था किसी से
ना ही उसे डर रह गया था किसी का
और ये भी जान गई थी वो
कि उसकी गलती नहीं थी कोई
'लेकिन इस मामले में कुछ नहीं होना था'
ये लाइन इतने विश्वास, दृढ़ता और सामान्य भाव से उसने कही मुझसे
कि मेरी उड़ान टूटी भी
और मैं गिरी भी नहीं
मैं लटकी रही आसमान में कुछ समय के लिए
और फिर, कुछ और समय के लिए
और सांस आई या नहीं आई
उससे कम वक़्त मुझे ये समझने में लगा
कि मैं उड़ नहीं सकती थी अब
और कि सांस लेना या ले पाना
और जीना
दो अलग अलग बातें थीं
और ऐसे उसने बचाई मेरी जान
13 साल की उस लड़की ने
बच्ची ने
मुझे तरस आया खुद पर
मैनें चाहा मरने जैसा कुछ
लेकिन मरना नहीं ..
सांस लेना भारी काम है एक।
कुम्हार और मालिक एक नहीं हो सकते थे
और उन दोनो में दर्द किसी का भी बड़ा होता
अगर वो बांट सकते उसे एक दूसरे से
तो कम हो सकता था शायद
घड़ा मिट्टी का था
उससे खुशबू आती रही होगी सालों साल।
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