Saturday, February 14, 2015

छोटी लड़की वो

वो छोटे शहर की छोटी सी लड़की
भागती हुई इधर उधर
लड़ती हुई खुद से
सब से, फिर सोचती हुई
बताती हुई खुद को अपने सपने
बार बार
कई बार
हंसती हुई
रोती हुई
सबसे घिरी, अकेली
मिलना है उस लड़की से
बताना है उसे
क्या दिया है उसने मुझे
कैसे उसके होने में मैं हूँ
और मेरे होने में वो
कैसे वो इतनी प्यारी है मुझे
जैसे अपना बच्चा

अरे छोटी लड़की
तुम छोटी नहीं हो
बड़ी हो
अपने सपनों से बड़ी
अपने आप से भी
और उन सब लोगों से
जो आसपास हैं तुम्हारे
समझाते हैं दिन रात
बताते हैं सही ग़लत
सिखाते हैं सलीके से बैठना
बुरा न मानना, बड़ों से न झगड़ना
और खुद को खुद न रहने देना
वो सब नहीं समझेंगे
लेकिन उससे कोई फ़र्क नही पड़ेगा
नहीं पड़ा कभी
तुम अब मैं हूँ
और ये जीत है या नहीं
लेकिन हार तो नहीं है
और ये साबित करता है
मेरे दिल में बसा ढेर सारा प्यार तुम्हारे लिए

तुम थी और तुम रहोगी
मुझमें
जैसे मैं तुममे थी
जिसे कोई नहीं देख सकता था
लेकिन तुम्हें मुझमें सब देखेंगे
उन्हें देखना होगा
कैसे छोटी लड़कियां
लड़ती हुई, गुस्सा करती हुई
सुबकते सुबकते मुस्कुराती हुई
बड़ी होतीं हैं
सपने देखती हुई
ज़िन्दगी जीती हैं
खुद जैसी बड़ी
जैसा उन्हें होना था
वो सब करती हुई 
जो उन्हें करना था

छोटे शहर छोटी लड़कियों को
कुछ भी दें
वो मना करेंगी लेने से
पूरी ताकत से अपनी
और निकल जाएँगी रास्तों पर अपने
और उड़ेंगी
आसमान तक। और फिर उससे भी पार।

हम छोटी लड़कियां
हम क्या हैं
उन्हें नहीं पता
हम पतंग हैं
रंग हैं, खुशबू और मिठास
गुस्सा, आंसू और आग भी
हम हैं
और हमें बस यही करना है
हमें बने रहना है हम

बस ...



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