Saturday, May 20, 2017

रात

जिस आत्मा को बड़े प्यार से
सहमे कदमो से धीमे धीमे बढ़कर छुआ था उसने
लौटते वक़्त काटता हुआ लौटा
चिंगारियां जैसे बिखरी हों शरीर पर
और कोई छिड़के जा रहा है नमक, लगातार



Tuesday, March 21, 2017

सिरे

सुनो
वक़्त के दो सिरे हैं 
एक, जिसमे मैं हूँ 
प्यार में 
निहारती हुई तुम्हें 
दूसरा, जिसमे मैं पीट रही हूँ दरवाजा, बेधड़क 



Saturday, February 4, 2017

दिसम्बर

जीभ पर खून का स्वाद
आत्मा पर तुम्हारा
दिल डूबता है
छिपता है बर्फ में कहीं
चल चलकर थकती नहीं मैं
ख़त्म नहीं होता दिसम्बर, महीनो