Saturday, February 4, 2017

दिसम्बर

जीभ पर खून का स्वाद
आत्मा पर तुम्हारा
दिल डूबता है
छिपता है बर्फ में कहीं
चल चलकर थकती नहीं मैं
ख़त्म नहीं होता दिसम्बर, महीनो

उंगली पर दिन गिनती हूँ
जब आँख गिनती है नमक
हथेली पर खुशबू
खुशबू जो तुम
प्यार था, कहने में अटकी सांसें
साँस की अटकन, तुम

खून की घूट भरो
याद न करने में कैसी हिम्मत
गाली देने में सारी
जो कहा जैसे, रहा साथ मेरे
एक बस तुम नहीं
घटती गयी सांसें
दिल सुखा होकर भी भरा नहीं


होंठों ने छुई थी आत्मा
धोखा भी दिया होंठों ने ही| 



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