मैं माथे से शुरू करती हूँ
पहुँचती हूँ छाती तक
खोजती हूँ दिल अपना
और कुछ एक, कुछ भी भाव
और हैरान होती हूँ तब
कहने और सुनने से पार
एक दुनिया बनाई मैंने
महसूस करने और व्यक्त करने से दूर
खुद को भी ना करूँ महसूस
कि खो जाऊं, जैसे सो जाऊं
जैसे बस देखूँ तो बस इतना
कि ना होना मेरा।
घटनाएं घटती हैं
अक्सर एक ही घटना बार बार
इंसान मरता है
अक्सर एक ही इंसान अनेकों बार
हम खोजते हैं कुछ
और बावजूद इसके कि मिल जाता है
हमारी खोज खत्म नहीं होती।
उम्मीद भरी एक कविता मैंने लिखनी चाही
और खो दी सारी बचीखुची उम्मीद उस कोशिश में।
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