Monday, April 4, 2016

राह

राह में मुडोंगे कई बार
देखोगे एक ही राह, बार बार
ढूंढोगे एक चेहरा
मगर जो दिल दुखा है 
वो चेहरे ना आया करते हैं नज़र यूँ

जब बादल उड़कर पहुँचना चाहता था कल में
और सुना रहा था कुछ किस्से तुम्हें
और तुम सच मानकर उसकी कही हर बात को
कोस रहे थे उसे
होने के लिए कुछ ज़्यादा आज़ाद अपने विचारों में
वो थाम रही थी खुद को
और कर रही थी इंतज़ार
की कभी किसी दिन
किसी सुबह में शायद
तुम समझो
की बादल बस आया करते हैं
खेल खेलने को
और चले जाया करते हैं
उनके होने से नहीं है आसमान
और तुम
यूँ न करो तबाह इस दुनिया को
जो वो बनाकर बैठी थी दहलीज पर
और सौंपना चाह रही थी तुम्हें
या बस बांटना

यूँ न होना था कल को काला
और होता चला गया

वो आगे पीछे डोलती हुई
लांघती हुई कीचड़ वाले कुछ लम्बे रास्ते
और करती हुई खुद की गति धीमी
कि शायद, क्या पता
किसी कदम पर रोक पाओ तुम उसे
और कहो की नहीं, तुम आज़ाद ही अच्छी थी
वो लांघ जाती है पहाड़

अब ना उतरना है नीचे
ना ही कोई दुनिया लिए बैठी है

मगर जो खोया है तुमने
वो याद आएगा
ढूंढोगे हर जगह
चाहोगे जानना
मगर सच की आवाज़ ये
की ना मिले कभी वो |



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