टेढ़ी मेढ़ी गलियां हैं। गलियां नहीं रास्ते। टेढ़े मेढ़े नहीं, ऊपर नीचे ! सांप की तरह फैले हुए, एक लम्बा सांप। अनन्त। एक लड़की है, छोटी लड़की, हवा के जैसी । छोटी लड़की ऊपर चढ़ती है। कोई दस कदम, और देखती है मुड़कर नीचे की ओर, हर दस कदम पर। घर छोटा, फिर थोड़ा ओर छोटा फिर थोड़ा ओर ऊपर से ओर भी छोटा नज़र आता है। जैसे खेल हो गया है एक, हर दस कदम, और घर ओर छोटा। अब जब वो पहुँचने वाली है सबसे ऊपर की चोटी पर, तो नहीं कर पा रही है फैसला की जाए तो कहाँ जाए इसके बाद?
दरअसल उसने चढ़ना शुरू किया था सोचकर कि आज बादल को छूना है, जो कि दिखाई पड़ता था बस थोड़ा सा ही ऊपर इस चोटी से। सफ़ेद बादल, नीले नीले आसमान में मिला हुआ। मगर जैसे जैसे वो थोड़ा ऊपर चढ़ती, बादल भी ऊपर खिसकता। वो भागकर चढ़ती, तो बादल भी भागकर चढ़ जाता। अब? नाना ने उसे सिखाया था की कैसे उँगलियों से या हाथ से और कभी बड़ी जगह होने पर बाजू से किसी चीज़ की दूरी नाप सकते हैं। लेकिन कितनी भी नाप लो, बादल तो बराबर ही दूर बना हुआ है। अब ये क्या गलत हो गया?
थोड़ा सोचकर मगर कुछ भी ना समझकर, वो बैठ जाती है, मगर चोटी से मुंह मोड़कर। करीब दो मिनट बाद ,एक बार फिर से मुड़ी। अभी भी दूर ही है। अब तो सामने वाले पहाड़ पर पड़ा सूरज भी पीले से लाल होने लगा है। अँधेरे से तो लड़की नहीं घबराती है मगर अँधेरे से पहले घर न पहुँचने पर पड़ने वाली डांट भी तो अच्छी नहीं लगती।
उदास लड़की बैठी हुई है। पास पड़ी घास पर छोटे छोटे फूल उगे हैं, चोटी की ओर देखकर एक बार फिर, जैसे अब देख रही हो आखिरी बार बस, मुंह बनाकर थोड़ा ओर ओर बादल की तरफ वो अब तोड़ने लगी है उन फूलों को। नोचने लगी है जैसे। फूलों का रंग उसके हाथ और हाथ से हल्का चेहरे पर लग गया है। फूल तोड़ते तोड़ते वो चलने लगती है उसी रास्ते पर वापस की ओर जिसे इतने दिन की प्लानिंग के बाद उसने आज बादल छूने के लिए चढ़ना शुरू किया था। वो उतर चुकी है आधा रास्ता और बादल तो नहीं छू पाई मगर फ्रॉक में कुछ सफ़ेद और कुछ गुलाबी फूल ज़रूर ले आई है भरकर।
रास्ते में ही माँ है। उसके सिर पर पानी का एक बर्तन है, और एक हाथ में। माँ के हाथ से बर्तन लेकर वो भी उसी के साथ चलने लगती है। घर पहुँचते पहुँचते सूरज लाल के साथ थोड़ा काला रंग ओढ़ चुका है।
दरअसल उसने चढ़ना शुरू किया था सोचकर कि आज बादल को छूना है, जो कि दिखाई पड़ता था बस थोड़ा सा ही ऊपर इस चोटी से। सफ़ेद बादल, नीले नीले आसमान में मिला हुआ। मगर जैसे जैसे वो थोड़ा ऊपर चढ़ती, बादल भी ऊपर खिसकता। वो भागकर चढ़ती, तो बादल भी भागकर चढ़ जाता। अब? नाना ने उसे सिखाया था की कैसे उँगलियों से या हाथ से और कभी बड़ी जगह होने पर बाजू से किसी चीज़ की दूरी नाप सकते हैं। लेकिन कितनी भी नाप लो, बादल तो बराबर ही दूर बना हुआ है। अब ये क्या गलत हो गया?
थोड़ा सोचकर मगर कुछ भी ना समझकर, वो बैठ जाती है, मगर चोटी से मुंह मोड़कर। करीब दो मिनट बाद ,एक बार फिर से मुड़ी। अभी भी दूर ही है। अब तो सामने वाले पहाड़ पर पड़ा सूरज भी पीले से लाल होने लगा है। अँधेरे से तो लड़की नहीं घबराती है मगर अँधेरे से पहले घर न पहुँचने पर पड़ने वाली डांट भी तो अच्छी नहीं लगती।
उदास लड़की बैठी हुई है। पास पड़ी घास पर छोटे छोटे फूल उगे हैं, चोटी की ओर देखकर एक बार फिर, जैसे अब देख रही हो आखिरी बार बस, मुंह बनाकर थोड़ा ओर ओर बादल की तरफ वो अब तोड़ने लगी है उन फूलों को। नोचने लगी है जैसे। फूलों का रंग उसके हाथ और हाथ से हल्का चेहरे पर लग गया है। फूल तोड़ते तोड़ते वो चलने लगती है उसी रास्ते पर वापस की ओर जिसे इतने दिन की प्लानिंग के बाद उसने आज बादल छूने के लिए चढ़ना शुरू किया था। वो उतर चुकी है आधा रास्ता और बादल तो नहीं छू पाई मगर फ्रॉक में कुछ सफ़ेद और कुछ गुलाबी फूल ज़रूर ले आई है भरकर।
रास्ते में ही माँ है। उसके सिर पर पानी का एक बर्तन है, और एक हाथ में। माँ के हाथ से बर्तन लेकर वो भी उसी के साथ चलने लगती है। घर पहुँचते पहुँचते सूरज लाल के साथ थोड़ा काला रंग ओढ़ चुका है।
Beautiful... Badlon jaise sapne.. Choose ki koshish..oopar chadhte chadhte..:)
ReplyDeleteBeautiful... Badlon jaise sapne.. Choose ki koshish..oopar chadhte chadhte..:)
ReplyDeleteएक छोटा लड़का पीले से लाल होते सूरज की ओर दौड़ा चला जा रहा था।शाम को पकड़ना था शायद उसे।किसी ने बोला तो था उसे शाम पकड़ कर रखने के लिए लेकिन जब वो लौटा तो अपनी मुट्ठियों में सिर्फ़ जुगनूँ लिए भागा चला जा रहा था...शायद उसी ओर, जिस ओर सूरज लाल के साथ थोड़ा काला रंग ओढ़ चुका था।
ReplyDelete