Thursday, May 12, 2016

शोर

शोर से दबाए ये दुःख
अगर उठ खड़े हुए किसी दिन
तो हम लड़ नहीं पाएंगे इनसे
हमे अपने बच्चों को सीखाना होगा खेलना
और हंसना
और रोना भी
मगर कभी कबार

जोश के मायने मत बदलो
दर्द के भी नहीं
जीने दो उन्हें हरे, लाल, नीले, पीले,
हर रंग के बीच
होने दो गहरा उनके अपने रंग को
और देखो
कैसे शोर मचाना ज़रूरत नहीं रह जाएगा हमारी

हवा पीकर झूमते उस लड़के को देखना
आँखें नोचने जैसा लगता है
दिल फटता है वैसे ही
जैसे शोर से दिमाग
और रूह

कल काले बादल थे जहाँ
आज आसमान नहीं है वहां
हमने छीने हैं सारे आसमान
और ज़मीनें
अपने बच्चों की हर हंसी
बेच चुके हैं हम
और अब हम बस शोर मचाते हैं
ताकि बच्चों का सुबकना छिपा सके
दुनिया से कम
खुद से ज़्यादा

महानता और उत्सवों के शिकार हम सब
जिन कुओं में गिर चुकें हैं
उनमें ना पानी है
ना उम्मीद
ना हवा, ना बचपन
दया का भाव बढ़ गया था पिछले साल
तो दफना चुके उसे
और अँधेरे में
अपने अपने शोर में नाचते हुए
हम सब इंतज़ार में हैं किसी फ़रिश्ते के

फरिश्ता... 
जिसके होने का विश्वास हममें किसी को नहीं।



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