Saturday, May 21, 2016

कहाँ

मिटटी खोदकर निकालो एक सपना
आधा मर चुका है जो
आधी सी साँस पर जीता हुआ
उम्मीद करता मरने की
पानी मांगता है मुझसे
तो कभी मौत

बिल्ली की साँसे अटकना
मतलब पहाड़ का टूटते जाना ज़रा ज़रा
खुरचना एक दीवार को
रखना कांच पर कांच
और सबसे नीचे एक शरीर
मारना कुल्हाड़ी
या बस एक ईंट
देखना एक काला सच उनका
और करना उम्मीद की फट जाए आसमान
और खा जाए आपको
आप मिटटी से नहीं
उसकी खुशबू से जलते हैं

आग करती है सुर्ख आँखों को
बिखेरती है गुलाबी रंग
उनके लिए जो देख नहीं सकते
आग करती है पानी का काम

आपसे कोई मतलब नहीं मुझे
खुद से भी क्या
लेकिन ये जो लट है ना
बीच में हमारे
ये टूटती है, न टिकती है
अटकती हुई ये
उलझती हुई ओर ओर
घोटती है गला मेरा
और आपका
और ऐसे कईं दिनों और रातों का
जो सांस लेना चाहते हैं झील किनारे
अटके पड़े हैं एक लट में

संगीत जोश जगाता था उनमें
यादों में खोकर कुछ पल
मुरझा जाते थे वो
कल आज या कल
जीवन कहाँ था?
हम मिलकर ढूंढ रहे थे
और यूँ हम काट रहे थे एक दूसरे को
और फूँक रहे थे उम्मीद 
मिटटी को मिलाना था आसमान से
और यूँ होना था हमें पागल।

ये अंत होना था या शुरुआत
हमने नहीं सोचा।



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