वैसे तो कलम के कई इस्तेमाल थे
कविता कहानी लिखने के अलावा
उससे चित्र बनाए जा सकते थे
उसे लेकर हाथ में यूँही
कभी दबाकर दांतों के
बीच
सोचा जा सकता था घंटों
फिर पढ़ते हुए कोई किताब
वहीँ कहीं किसी पन्ने पर रुका जा
सकता था
छुपाया जा सकता था कलम को
पन्नों की खुशबू के बीच
मगर उसने चुना कलम को ताकते रहना
बात करना कलम से
और पूछना उसी से कुछ सवाल
क्या करूँ मैं तुम्हारा?
तुम्हारी अपनी भाषा है क्या कोई?
कभी शांत तुम रहकर कह जाती हो बातें कितनी
और कभी चुभने सी
लगती हो आँखों में
दुःख नहीं था कोई
खिंचाव बस एक
लम्हा बड़ा होता होता छोटा होता गया था
और यूँ खत्म एक दिन
फैसले सुनाए जा रहे थे
मगर प्रश्न नहीं थे
प्रश्न थे अनेक मगर
जवाब नहीं थे
यूँ हम चलने लगे थे पीछे की ओर
एक बार फिर
एक वक़्त जो पहुंचा था यहाँ तक मुश्किल से बड़ी
छोटी बड़ी कुछ कुर्बानियां मांगी गईं थी
कुछ जाने और कुछ भरोसे
मोहब्बतें, बच्चे और ज़िंदगियाँ
अब सब लुटाने के बाद
हम लौटने लगे थे
कलम
मेरी प्यारी कलम,
तुम्हें कैसे चलाऊँ मैं?
कि कह भी पाऊँ कुछ
समझा भी पाऊँ
और डरूं भी न मैं
शब्द चुनू या चित्र
सवाल करूँ या लिखूं जवाब बस
कोशिश भी करूँ क्या?
क्या है इस्तेमाल तुम्हारा
किस तरीके से छिलुं तुमको
कि तुम मुस्कुराने न सही,
बोलने ही लगो?
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