Thursday, August 13, 2015

जीवन, शायद

नन्हे नन्हे दो हाथ निकलते हैं मिटटी से
कब्र है शायद वहां
आप सोचते हैं एक पल और बढ़ते हैं आगे
गहरी खाई हरे रंग की
उससे बहता है एक सपना
जन्मो से बहने वाला ये सपना
टूटता है बीच में
और देता है जन्म
एक बच्ची को

कल को खींचकर तोड़कर मरोड़कर
दबाकर या दबोचकर
आप बनाना चाहते रहे आज
परसो जो देखा है दूर से
वो आया ही नहीं

वक़्त को आप गाली दो कितना भी
गुलाम बने रहना उसका
कर्तव्य है आपका
आप चाहे तो भर लें रुई साँसों में
नोंच ले आँखें सारी पेंसिल से लगातार
नाख़ूनो में भर लें स्याही नीली नीली
और सांस लें ज़ोर ज़ोर से ऐसे
की सुनामी आये तो शुरुआत आपके घर से हो

आप समझते नहीं हैं सर
बात जो कही जा रही है वो है ही नहीं
जो है यहाँ उसे हम देख नहीं रहे हैं
कल जो बीता था
वो काला था
झूठ
और कल जो आ रहा है चलकर आपकी और
वो धरती की चाल है एक
सपने में खुद को खूबसूरत देखते हैं अगर आप
तो तड़पना वहीँ शुरू होगा आपका
आप भरिये कील खुद में
या फेंकिए कुल्हाड़ी पडोसी पर
आप आग से नहीं बच सकते
पानी और मिटटी की कमी के इस दौर में
आप मुस्कुरा लीजिये कितना भी
सुकून आपका नहीं हो पाएगा
और ये श्राप नहीं
बस एक मनहूस सी बात है
जिसका ज़िक्र पहली बार मेरी जुबां से होना था

पिरो लो एक रौशनी माथे में
भरो थोड़ी ठंडक
बोलो कम मगर बोलो ज़रूर
की क्यों आप जी पाए आज तक
की कौन से लोग हैं जिन्होंने पाला है आपको हर रोज़
की कैसे आपको दिखाई देता है एक चेहरा
जिसका दर्द पीना पुण्य सा लगता है
और जिसे आप रखना चाहते हैं सहेजकर
जिसने सिखाया था किताब पढ़ना कभी
और सीखा था पहाड़ को जीतना आपसे
आप हारे कभी जीवन में जब
तब घर दिया एक लौटने के लिए
और रौशनी बिखेरी दीयों से
पंख दिए
और सिखाया उड़ना
लगातार
वो चेहरा जो पाक है
जिसे आप नहीं कह पाए कितनी ही बातें
बावजूद इसके की कह सकते थे कुछ भी..

नन्हे से वो हाथ अगर आगे बढ़कर कभी मांगे कुछ
तो कुछ होगा क्या आपके पास बाँटने के लिए?



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