उड़ते वक़्त बस आसमान दिखता था उसे
नीला, सफ़ेद, खूबसूरत
हवा आँखों में जाती तो जैसे दुनिया जीत रहा हो
होंठों पर एक सूखापन लुभाता खूबएक दिन जब टकराकर गिरा पेड़ से
तो वो साथी याद आया जिसके साथ उड़ता था वो हमेशा और जो अक्सर पीछे छूट जाता था फिर गुस्से में कहता कभी "मुझे भी कभी देखा करो पीछे मुड़कर" वो बस हंस देता गर्व करता अपनी उड़ान पर पंखों पर आसमान छू पाने की अपनी कला पर पीछे छूटने वाला साथी गर्दन उठाकर देखता उसे और बस देखता बचपना समझता उसके इतराने को और खुश होकर कूदने सा लगता जब वो, तो समझता उसका झल्लापन मुस्कुराता थोड़ा, और पूछता कुछ खाओगे, या बस पेट भर गया उड़ान से? एक दिन पीछे छूटने वाला साथी पीछे नहीं रहा उसने रास्ता बदला और अपनी एक नई उड़ान पर उड़ गया आज गिरने पर ना आसमान याद आया ना चमक, ना खुशबू हवा भी नहीं बस वो एक साथी, जिसे मुड़कर नहीं देखा कभी ।
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ReplyDeleteU write really well
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