Wednesday, May 20, 2015

दूर की रोशनियाँ ..

पडोसी थोड़ा ज़्यादा सच्चा रहा हमेशा
दूर की रौशनी ज़्यादा खूबसूरत

हम पिघल रहें हैं ज़रा ज़रा
या जम रहें हैं अंदर
ठंडक हो या गर्मी
पानी की ज़रूरत रहेगी हमेशा 

वो जो खुद को जुदा मानता है
नहीं जानता मतलब दूरियों का
वो जो बहता है नसों में
पहाड़ों पर ढूंढता है अपनी जगह

दूर से थोड़ी झिलमिलाहट
जितनी खूबसूरत लगी
पास जाकर रंगों ने परेशानी दी उतनी
हम खेल रहे हैं अंताक्षरी
कहीं बैठकर चौराहे पर
और अचानक उसका अतीत जीतने लगता है सारे खेल मेरे 

घबराहट है या ठंडक बस
सुकून मानो या बर्फ होना जैसे
कैसे किस फैंसले तक पहुंचना है
करना है तय कौन सा रास्ता
लड़ना है, या हारना है बस
सब ये हाथ ही तय करेंगे
या साँसे शायद

दिल गुमराह नहीं है
होता तो आसान होता शायद रास्ता थोड़ा
या ये भ्रम इसी रूप में है खूबसूरत

दिमाग में दिए  रखें हैं कई
जलते हैं कुछ
कुछ महकते हैं, बुझने के बाद
कुछ निराश है शायद
और कुछ खुशियों में उलझे
रौशनी में अपनी ही
खोना और पाना कुछ नहीं है
कुछ तो कुछ है मगर
हम जान गए हैं कल की खातिर
एक कल की आवाज़
सुनी है हमने परसों कही हुई एक बात

पहाड़ नाराज़ हैं
समंदर बढ़ता जाए गुस्से में
हम हम ही रह पाएं
दुःख और सुख दोनों में
ज़िन्दगी का रंग खूबसूरत हो सकता है| 



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