Wednesday, August 10, 2016

आधी रात

रास्ते पर निकलती है तो
निकलती ही जाती है
सुबह से शाम
शाम से रात
और यूँ आधी रात के अंधेरे में
वो है बीच इस जंगल के

इससे पहले ढूँढती रही घंटों
टटोल रही थी अलमारी
और फिर छत पर गयी
कुछ ढूँढने से जब मिला नहीं
तो पत्तों को हटाया झाड़ू से
सूखे पत्ते पीपल के
दिए जलाए कुछ और लौट आयी

फिर खोजा कुछ और जगहों पर


कुछ गड़बड़ है
ग़लत सा कुछ t
मगर पकड़ना मुश्किल है

लड़की प्यार में है
आज कुछ कहना मतलब
होना दुश्मन
कुछ ना कहना मतलब
देखना दर्द को रिसते हुए हर नस में

एक दर्द के बाद, एक दूसरा दर्द
ज़ख़्म अंतहीन
शायद समझ आया है उसे
क्या है ग़लत
पतंग की डोर, जो उड़नी थी ऊपर
गिरी नीचे कुएँ में कहीं
और लड़की है की तकती रही आसमान को

ग़लत हाथों में सौंपी डोर
पतंग को बस नौचने में मदद करती है

अब एक और मोड़
और चंद्रमा सामने
सफ़र, फ़िलहाल बस इतना ही।



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