सारे डर इस लम्हे में आने थे
सबसे मिलना था ऐसे ही
जी हज़ूरी सालों की
एक क़िस्सा ख़त्म
रास्ता अचानक कट गया
बाड़ थी या आवेग
दर्द पीकर ख़त्म किया
और बढ़े आगे
आसमान से चिल्लाया कोई
कूदा और नोंचा गला मेरा
पकड़कर गला एक हाथ से
मैं ताकती रही उस बूँद को बादल में
टपक ही नहीं रही थी
लाल ख़ून, गाढ़ा जैसे कीचड़
कैसे किस तरफ़ चलें,
मुड़ जाएँ क्या?
सर पकड़कर, लाल हरी आँखें लिए
मैं मनाती रही लोगों को चौराहे पर
कोई तो दिखाए रास्ता
सही और ग़लत सब छूट गया है मेरा
बिजली गटक जाए मुझे या मैं उसे
कहीं, कोई तो अंत हो
उसको थोड़ा भी अंदाज़ा होता इस पागलपन का
दिल जकड़ता या पकड़ता हाथ?
होंठ बात करने में कम ही खुले मेरे ।
सबसे मिलना था ऐसे ही
जी हज़ूरी सालों की
एक क़िस्सा ख़त्म
रास्ता अचानक कट गया
बाड़ थी या आवेग
दर्द पीकर ख़त्म किया
और बढ़े आगे
आसमान से चिल्लाया कोई
कूदा और नोंचा गला मेरा
पकड़कर गला एक हाथ से
मैं ताकती रही उस बूँद को बादल में
टपक ही नहीं रही थी
लाल ख़ून, गाढ़ा जैसे कीचड़
कैसे किस तरफ़ चलें,
मुड़ जाएँ क्या?
सर पकड़कर, लाल हरी आँखें लिए
मैं मनाती रही लोगों को चौराहे पर
कोई तो दिखाए रास्ता
सही और ग़लत सब छूट गया है मेरा
बिजली गटक जाए मुझे या मैं उसे
कहीं, कोई तो अंत हो
उसको थोड़ा भी अंदाज़ा होता इस पागलपन का
दिल जकड़ता या पकड़ता हाथ?
होंठ बात करने में कम ही खुले मेरे ।
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