Wednesday, November 21, 2018

कितनी कहानी मेरी, कितनी मोहब्बत

प्यार में कुआँ होना बर्दाश्त नहीं होता जब 
लोग मिटटी हो जाया करते हैं 
कुरेदते हैं खुद ही 
खा लेते हैं कभी थोड़ा.. 
और कभी खुद ही करते हैं दफन खुद को...

तुम गए, 
तुम्हें जाना था 
मैंने नहीं रोका.. 
क्यूंकि जाने वाले को रोकना, जैसे अपशगुन 


वो खवाब है एक, 
रोज़ शाम में आता है 
नहीं.. शाम के बाद, रात से पहले.. 

एक टीचर है, 
एक बच्चा 
बच्चा बड़ा हो गया, 
टीचर वहीँ रुकी है 
बच्चे को याद एक लम्हा बस.. 
पहली बार किसी ने प्यार से हाथ फेरा था गाल पर, 
"खुले मुंह अच्छे नहीं लगते तुम"
एक मुस्कान, जो तुमने नहीं बताई 
मैंने सोच ली खुद ही

प्यार को सिर्फ बोया, उगाया ओर काटा नहीं मैंने 
लपेटा भी खुद में 
और कसती गयी फिर, सालों 
लगातार

बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ.. 
और रिक्शा पे गया,
पहला-पहला प्रेम पत्र हाथ में 
एक लड़की, रुआंसी.. 
कपड़े सुखाते थकती नहीं छत पे
वो सर्दी का है महीना जबकि

कितनी कहानी मेरी, कितनी मोहब्बत 
कितना दर्द ओर, कितना मैं कर चुकी दफन 
हिसाब कभी होगा तो क्या होगा 
मैं डरती भी, और लड़ती भी 


प्रेम करना तुम्हें जैसे डूबता जाना खुद में .



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