माँ जो सदा से माँ है,
माँ जो सदा माँ रहेंगी..
माँ जब सहेली है, तब भी माँ है
माँ जब खिलखिलाकर हंसती हैं तो बच्ची हैं
मगर माँ ही हैं
बच्चों जैसी माँ
बच्चों जैसी माँ
मैं झुर्रियों के पीछे छुपी मासूमियत तक पहुँचती हूँ
और सोचती हूँ माँ को
किसी ऐसे वक़्त में जब माँ, माँ नहीं थी
वो कभी एक आज़ाद पंछी भी थी क्या?
मैं देखती हूँ कुछ तस्वीरें पुरानी,
माँ खूबसूरती है..
माँ गहरी ऑंखें हैं
मेरे दिल का सबसे कोमल हिस्सा है,
मेरे वजूद का सबसे पहला नाम है
माँ है, और इसलिए सुकून है
माँ कविता नहीं है,
कविता का सार है
कविता का सार है
माँ हक़ीक़त है, मगर सपना है
माँ हर लम्हा है
और हर लम्हें के बीच में छिपे कई लम्हें भी माँ है
माँ की आवाज़ आज़ान है
और माँ का स्पर्श जैसे शब्दों की कमी
और माँ का स्पर्श जैसे शब्दों की कमी
माँ जिसने पहले बोया, फिर सींचा और उगाया मुझे
माँ जिसने देखा है मुझे लड़ते हुए,
हँसते रोते चिल्लाते हुए,
हर आते जाते मौसम से..
माना खुद की लड़ाई उसे
हँसते रोते चिल्लाते हुए,
हर आते जाते मौसम से..
माना खुद की लड़ाई उसे
एक मौसम से बचाया कभी,
तो कभी खिलने दिया,
पलने दिया फूलों सा, खवाबों सा
पलने दिया फूलों सा, खवाबों सा
और देखा अपने बगीचे को भरकर सुकून सा आँखों में
माँ जिसके होने भर में ज़िन्दगी की कहानी है
माँ प्यार की परिभाषा है
माँ अनंतकाल सा,
कभी ना कम हो पाने वाला प्यार लेकर बैठी है
कभी ना कम हो पाने वाला प्यार लेकर बैठी है
माँ मेरी है, और ये सुकून है.
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