Wednesday, September 7, 2016

नमक क्यारियां

नमक के इस्तेमाल अभी और समझ आने थे
जीने के बीच साँसों में उधारी आनी थी
एक बच्चा, जो सींचता था क्यारियां दिन-रात
उसे खुद को बड़ा करना था
और होना था बेचैन
फिर आना था वो लम्हा
पहली बार गाली देना मुंह से
आप खुद को देते हो..
बड़ा होना जैसे होना शहर

आज़ादी और भीड़ को चुनते चुनते
छोड़ते हुए कभी,
कभी बस निकलते हुए आगे
नमक खरीदकर लौटते हुए
याद आना एक भूला हुआ बचपन,
माँ की ऊँगली पकड़कर चलना,
या कभी बस दुपट्टा,
दूर के किसी चाचा की हंसी,
पापा की बेवजह की डाँट,
और उनको ना समझा पाने का दुःख,
गाँव की महफ़िलें,
और माँ का अकेलापन,
जिसे हम सब मिलकर भी नहीं तोड़ पाए
फिर बड़े होकर देखना खुद को उन पुराने रास्तों में
अपनी बच्ची के साथ..

वक़्त दोहराये खुद को
तो कुछ ऐसा हो
सांस आती रहे आसानी से
कोई पलटकर न देखे
ना डराए हमे
काले रंग या किसी अलग दिखने वाले को नकारने से पहले करें सवाल हम
करें सवाल कईं, बार बार
पूजा करवाएं घर में कितनी भी बार
मगर केसर, अगरबत्ती, धूप, चरणामृत की खुशबू के बीच
आप हर बार याद करे उस बच्चे को ज़रूर
जिसने क्यारियां सींची
नमक ख़रीदा
और अपने ही उगाए बैंगनों को बेचकर या पकाकर
भरा आपका पेट

बच्चे, जो बचपन में बड़े थे
जवानी में हुए बेचैन,
और बुढ़ापे में उन्होंने जाना
कि उनका होना कोई फर्क नही कर पाया संसार में
इस बच्चे के बुढ़ापे के नाम मेरी एक चिठ्ठी
और मुठ्ठी भर उम्मीद
कि बुढ़ापे में ही सही
बस एक बार वो जी पाए अपना बचपन!




No comments:

Post a Comment